CRS NEWS रायबरेली: बगदाद – इराक में गठबंधन सरकार ने विवाह कानून में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया है, जिसके अनुसार लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 9 साल कर दी जाएगी। यह विवादास्पद प्रस्ताव इराक की संसद में पारित होने की संभावना के चलते अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर बहस का मुद्दा बन गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस विधेयक में विवाह कानून में बदलाव के साथ-साथ महिलाओं के तलाक, बच्चों की देखभाल (कस्टडी) और विरासत से जुड़े अधिकारों पर भी असर पड़ेगा।
यूके की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस विधेयक के लागू होने के बाद महिलाओं को तलाक, कस्टडी, और विरासत से जुड़े मौलिक अधिकारों से वंचित किया जा सकता है। इसके अलावा, यह विधेयक नागरिकों को पारिवारिक मामलों पर निर्णय लेने के लिए धार्मिक प्राधिकारियों या सिविल न्यायपालिका में से किसी एक को चुनने का विकल्प भी देगा। इससे इराकी समाज के भीतर पारिवारिक मामलों पर धार्मिक प्रभाव और भी बढ़ सकता है।
इराकी संसद में शिया मुस्लिम दलों के गठबंधन का प्रभुत्व है, और वे इस संशोधन के समर्थन में एकजुट नजर आ रहे हैं। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रस्ताव उस “व्यक्तिगत स्थिति कानून” को पलट देगा, जिसे 1959 में लागू किया गया था और जिसे मध्य पूर्व के सबसे प्रगतिशील कानूनों में से एक माना गया। यह कानून इराक में सभी धार्मिक संप्रदायों के लिए एक समान पारिवारिक नियम तय करता है, लेकिन नए प्रस्ताव के चलते इस कानून का असर सीमित हो सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस विधेयक के पास होने पर बाल विवाह की दर में वृद्धि हो सकती है, विशेष रूप से गरीब और रूढ़िवादी शिया समुदायों में, जहां पहले से ही बाल विवाह के मामले अधिक हैं। वर्तमान में इराक में बाल विवाह की समस्या विकराल रूप में विद्यमान है और यह कानून इसे और बढ़ावा दे सकता है।
सरकार के अनुसार, यह संशोधन इस्लामी कानून की सख्त व्याख्या के अनुरूप है और इसका उद्देश्य युवा लड़कियों को “अनैतिक संबंधों” से बचाना है। गठबंधन सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह कदम समाज में अनुशासन और धार्मिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए लिया जा रहा है।
इस प्रस्ताव का देश की महिलाओं और मानवाधिकार संगठनों ने कड़ा विरोध किया है। उनका मानना है कि यह कानून महिलाओं की स्वतंत्रता और सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। 2014 और 2017 में भी ऐसे बदलाव के प्रयास किए गए थे, लेकिन इराकी महिलाओं की प्रतिक्रिया और विरोध के कारण उन्हें वापस लेना पड़ा था।
ब्रिटेन स्थित शोधकर्ता डॉ. रेनाड मंसूर के अनुसार, यह प्रस्ताव शिया इस्लामवादी दलों की राजनीतिक वैधता और शक्ति को बढ़ाने का प्रयास है। उन्होंने टेलीग्राफ से कहा कि धार्मिक मुद्दों पर जोर देकर यह दल अपनी वैचारिक वैधता को पुनः प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं, जो पिछले कुछ वर्षों में कम होती जा रही थी।
इराकी समाज में इस प्रस्ताव को लेकर विरोध और असहमति बढ़ रही है। महिलाओं के अधिकारों पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, और समाज में बाल विवाह और लैंगिक असमानता जैसे मुद्दे और गंभीर हो सकते हैं। इराकी संसद में बहुमत के कारण यह विधेयक पास होने के करीब है, लेकिन इसके संभावित सामाजिक और नैतिक प्रभावों के कारण देश और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इसकी व्यापक आलोचना हो रही है।
CORRESPONDENT
RAEBARELI