गदागंज रायबरेली
रिपोर्ट मोहम्मद जावेद
रायबरेली। ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा। वर्षो पहले 7 जनवरी रायबरेली के इतिहास में आ सीमित छाप बनाए हुए है क्योंकि 7 जनवरी को रायबरेली में किसानों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं। जो मुंशीगंज गोलीकाण्ड के नाम से चर्चित है।
यूं तो आन्दोलन बहुत से हुए लेकिन रायबरेली किसान आन्दोलन (मुंशीगंज गोली काण्ड) ने वर्ष 1921 में अंग्रजों के साम्राज्य के ताबूत में कील ठोकने का काम किया था। इस किसान आंदोलन की कड़ियाँ दीनशाह गौरा विकास खण्ड के भगवंतपुर चंदनिहा गांव से जुड़ी हैं।
गौरतलब है की इस गांव के तालुकदार त्रिभुवन बहादुर सिंह के अत्याचारों से त्रस्त होकर पूरे खुसियाल लाला मजरे भगवंतपुर चंदनिहा निवासी पं. अमोल शर्मा के नेतृत्व में 5 जनवरी सन् 1921 को भगवंतपुर चंदनिहा में किसानों की बैठक की गई। जहां नाराज किसानों ने तालुकेदार त्रिभुवन बहादुर सिंह के महल को घेर लिया।
हजारों की संख्या में किसानों से घिरे महल को देख भयभीत तालुकेदार ने इसकी सूचना तत्कालीन जिलाधिकारी ए.जी, शैरिफ को दी। जिस पर जिलाधिकारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे और किसान सभा के नेताओं में अवधप्रांत के अग्रणी पं. अमोल शर्मा, बाबा जानकीदास व बद्री नारायण सिंह को समझौते के लिए महल के अंदर बुलवाया और वहीं से गिरफ्तार कर रायबरेली जेल भेज दिया गया, जहां से उन्हें तत्काल लखनऊ भेज दिया गया। इस समय किसानों को अपना योगदान देने वाला बाबा रामचंद्र नही थे।
फिर भी किसान अपने लोकप्रिय नेताओं को छुड़ाने के लिए रायबरेली की ओर पैदल ही चल पड़े और 6 जनवरी की शाम मुंशीगंज पहुंच गए। अपने लोकप्रिय नेताओ की गिरफ्तारी की खबर आग की तरह अवध प्रांत में फैल चुकी थी। जिसने भी सुना वह रायबरेली की ओर कूच कर गया।चारो ओर से मजदूर किसान रायबरेली आना शुरू हो गए। रायबरेली को चारो ओर से घिरता देख बौखलाए तत्कालीन डीएम ने इन सबको रोकने का प्रयास शुरु कर दिया।इसके लिए बैलगाड़ियों को मुंशीगंज पुल के रास्ते में लगा कर रास्ते को जाम कर दिया गया।
किसानों की भीड़ के उग्र रूप को देखकर अंग्रेज पुलिस ने किसानों को सई नदी पर ही रोक दिया।इसकी सूचना मारतण्ड वैद्य ने पं. मोतीलाल नेहरू को तार भेज कर दी।
उन्होंने इस घटना से अवगत कराते हुए उनसे यहां आने का आग्रह भी किया। उनकी अनुपस्थित में यह पर पं. जवाहर लाल नेहरू को मिला और वह तुरंत चल पड़े। इधर 7 जनवरी 1921 की सुबह एक सरदार बीरपाल सिंह की गोली का शिकार हुआ किसान बदलू गौड़ जैसे ही जमीन पर गिरा इसे ही जैसे अंग्रेजों ने एक आदेश मान लिया और निहत्थे किसानों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। इस गोलीबारी में सड़क से लेकर सम्पूर्ण सई नदी तक का पानी किसानों के खून से लाल हो गया। इधर गोली बारी शुरु हो चुकी थी।उधर मुंशीगंज पहुंच रहे श्री नेहरू को रायबरेली में ही रोक लिया गया। इस गोली काण्ड में हजारों किसान शहीद हो गए। उधर पकड़े गए किसानों को 100 रुपए का अर्थदण्ड व छह माह की सश्रम सजा सुनाई गई।
इसी गोली काण्ड की याद मे प्रतिवर्ष 7 जनवरी को किसानों के पुरोधा पं. अमोल शर्मा भगवंतपुर चंदनिहा गंगा घाट से जल लेकर शहीदो को नमन करने आते थे। उसके बाद वर्ष 1998 से इस जलांजलि की परंपरा को उनके दत्तक पौत्र शिवबाबू शुक्ला ने आरंभ किया वह बताते है की बाबा की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने कुछ बुजुर्गों के साथ पैदल यह यात्रा आरंभ की थी। इसी तरह वर्ष 2000 में साइकिल व वर्ष2001से 2004 तक टैक्टर से पहुंचे।2005 से जिला प्रशासन की ओर से एक बस मुहैया करवाई गई जो अब भी जारी है।
RAEBARELI(DALMAU)
TAHSIL CORRESPONDENT