
CRS AGENCY। चीन के रक्षा मंत्री ली शांगफू रूस के दौरे पर हैं। इस दौरान उन्होंने ताइवान के मुद्दे पर अमेरिका को घेरा है। उन्होंने कहा ताइवान मुद्दे पर अमेरिका आग से खेलने का काम कर रहा हैदरअसल, चीन के इस बर्ताव की वजह ताइवान के उप-राष्ट्रपति विलियम लाई का अमेरिका दौरा है। चीन ने उन्हें ट्रबल मेकर यानी मुसीबतें पैदा करने वाला कहा है। वहीं ताइवान ने चीन की इन धमकियों पर पलटवार किया था। उप राष्ट्रपति लाई ने कहा था कि ताइवान किसी भी धमकी से डरेगा नहीं और न ही पीछे हटेगा। चीन हमेशा से ही ताइवान के नेताओं के अमेरिका जाने पर आपत्ति जताता रहा है।ताइवान का एयर डिफेंस जोन उसके एयरस्पेस से काफी बड़ा है और कई जगह पर यह चीन के एयर डिफेंस जोन पर ओवरलैप कर जाता है। इसके अलावा सिर्फ एयरस्पेस ही नहीं बल्कि कहीं-कहीं पर इसमें मेनलैंड भी शामिल है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ताइवान के डिफेंस जोन में चीन की बढ़ती दखलंदाजी उसकी ग्रे जोन रणनीति का हिस्सा है जिससे वह आइलैंड पर दबाव बनाए रखना चाहता है।अमेरिका-चीन के रिश्तों में ताइवान सबसे बड़ा फ्लैश पॉइंटअमेरिका ने 1979 में चीन के साथ रिश्ते बहाल किए और ताइवान के साथ अपने डिप्लोमैटिक रिश्ते तोड़ लिएराष्ट्रपति जो बाइडेन फिलहाल इस पॉलिसी से बाहर जाते दिख रहे हैं। उन्होंने कई मौकों पर कहा है कि अगर ताइवान पर चीन हमला करता है तो अमेरिका उसके बचाव में उतरेगा। बाइडेन ने हथियारों की बिक्री जारी रखते हुए अमेरिकी अधिकारियों का ताइवान से मेल-जोल बढ़ा दिया।इसका असर ये हुआ कि चीन ने ताइवान के हवाई और जलीय क्षेत्र में अपनी घुसपैठ आक्रामक कर दी है। NYT में अमेरिकी विश्लेषकों के आधार पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक चीन की सैन्य क्षमता इस हद तक बढ़ गई है कि ताइवान की रक्षा में अमेरिकी जीत की अब कोई गारंटी नहीं है। चीन के पास अब दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है और अमेरिका वहां सीमित जहाज ही भेज सकता है।अगर चीन ने ताइवान पर कब्जा कर लिया तो पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा दिखाने लगेगा। इससे गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिका के मिलिट्री बेस को भी खतरा हो सकता है।
