गौवश सुरक्षा और सरंक्षण में आज लगभग दशक पूर्ण होने पर भी हम पूरी तरह कामयाब नही!
इमरान साग़र
CRS उत्तर प्रदेश-हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 26 अगस्त की रात जन्माष्ठमी पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया गया! तमाम आस्था रखने वाले भक्तो ने सुबह सबेरे से ही मंदिरो की साफ कर उन्हे सजाया और फिर भजन संध्या आरंभ होते ही माहौल को भक्तिमय भी बनाया, उस बक्त ही नही बल्कि पूरी रात जन्माष्ठमी पर्व को श्रीकान्हाश्याम के जन्मने तक और फिर सुबह प्रसाद वितरण होने तक का यह सफर सच़ में बहुत भक्तिमय रहा और सच्ची श्रंधा में ऐसा ही होना चाहिए!
इस पावन पर्व को और भी शान से मनाने के लिए प्रशासनिक व राजनीतिक जनप्रतिनिधि भी इस बार पूरी लगन से श्रीकृष्ण जी के सच्चे भक्त के रूप में दिखाई दिए, जगह जगह गौशालाओं में गौ पूजन सहित आरती तक उतारे जाने की चर्चा रही! यह सब होना भी चाहिए, धार्मिक प्रेम, जुबानी नही बल्कि सच्चे मन से होने का यही प्रमाण कहा जा सकता है, जो इस बार देखने को मिला और यह लगातार बढ़ौतरी होने की संभावना बनाने में सहयोगकारी है!
भगवान श्री कृष्ण का गौवंश प्रेम किसी से नही छिपा है! जहाँ श्री कृष्ण जी हो, तो गैरमुमकिन है कि वहाँ गौमाता न हो, यह हो ही नही सकता! जन्माष्ठमी के इस पावन पर्व पर, सजाबट से भरे जहाँ सैकड़ो मंदिर शिवालय आरतियों और भजनो की गूंज में माहौल को भक्तिमय बना रहे थे तो, वहीं उधर प्रशासनिक अधिकारी, राजनीतिक रसूखदार भी गौशालाओं में, गौमाता की आरती और पूजन करके फोटो खिचवा कर समाचार की सुर्खियाँ बनने में लगे थे और ठीक इसके विपरीत नगर की मुख्य सड़को, भीड़ भरी बाजारो और सार्वजनिक स्थानो पर सैकड़ो गौवंश रत्ती भर चारे की आस में चलते राहगीरो को बड़ी मासूमियत से ताकते देखे जा रहे थे! इनमें अधिकांश गौमाता ही नही बल्कि महाकाल भोलेनाथ के नंदी और बझड़े बछिया भी मौजूद रहे! सड़क पर खड़े, बैठे यातायात का जाम लगाए इस गौवंश परिवार पर, जन्माष्ठी के दिन भी किसी को दयापात्र नज़र आते नही देखा गया क्यूंकि इन पर तो आवारा मवेशी का तमग़ा लगा दिया गया है शायद!
स्थानीय स्तर की बात करे तो नदी रामगंगा पुल बेलाडाड़ी से लेकर कोतवाली तिलहर तक और फिर बाजार बिरियागंज से भक्सी तिराहे तक, और इधर बाजार बिरियागंज से सराऊ पुलिया तक, इतना ही राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित तिलहर चौराहे से बरेली मोड़ तक के सफर में सबसे अधिक तिलहर बदायूँ मार्ग पर शायद ही कोई जगह बची होगी सड़क पर, जहाँ गौवश अपने बड़े परिवार के साथ रोड जाम करें, न मौजूद हो! भूख से बिलखते यह गौवश स्वयं भी इतने परेशान नज़र आते हैं कि उनकी झुंझलाहट का शिकार हो अक्सर कई बार, मानव जाति की जान गवाए जाने की खबरे आम तौर पर चर्चा का विषय बन जाती है!
2017 में गौसरंक्षण को राजनीति पहलू समझ कर वोट बैंक ही नही बनाया गया बल्कि 2017 के बाद क्षेत्रिय स्तर पर उनके सरंक्षण के लिए युद्ध स्तर पर तमाम गौशालाओं का निर्माण भी कराया गया! और यह वही दौर रहा जहाँ गौरक्षा के लिए तमाम छोटे बड़े संगठन पहचान बनाने लगे! गौवश रक्षा मे तमाम संगठनो द्वारा किजा रहे अथक प्रयास समाचारो की सुर्खियों से ज्यादा किसी को कुछ नही लगे क्यूंकि खोली गई गौशालाओं को तमाम कथित, तथाकथित संगठन व्यापार का अड्डा तो बनाने की कोशिश में देखे गये परन्तु ग्रामीण क्षेत्रो में भूख से तड़पड़ते गौवश द्वारा किसान की फसलो का नुकसान करते नही दिखाई दिए!
बात यह बिल्कुल भी नही कि ग्रामीण क्षेत्रो की ग्राम पंचायतो में गौशालाएं निर्माण नही कराई गई और उनमें गौवश को सरंक्षण नही दिया गया, ग्रामीण गौशालाओं में आज भी जरुरत से अधिक गौवश देखने को मिल रहे हैं लेकिन साथ ही उनकी दयनीय स्थिति भी पूरी तरह जगजाहिर भी है! नगर स्तर पर सरकारी संस्थानो द्वारा चलाई जाने वाली गौशालाओं में यदि गौवश को प्रयाप्त भोजन और उन्हे मेडिकल परीक्षण नही मिल पा रहा है तो ग्रामीण क्षेत्रो में ग्राम प्रधानो द्वारा सरकारी धन पर चल रही गौशालाओं में गौवश की स्थिति और भी बदतर देखने को मिल रही है!
गौवश बचाने के लिए प्रेमियो और भक्तो की मांग पर गौहत्या सबसे बड़ा अपराध ही नही बनना था बल्कि गौहत्या अपराधी को मौत की सज़ा भी कम बताई गई, यह सही हो सकता है और होना भी चाहिए लेकिन गौवश की भक्ती और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी का पेटेंट कराए रखने वाले जिन्हे सड़को पर भूख से तड़पते गौवश तब दिखते हैं जब स्वयं का कोई स्वार्थ दिखाई दे तब सरकारी संस्थानो से लेकर सड़को पर भी बड़ा हंगामा होता दिखाई पड़ता है! गौसरंक्षण में सख्त कानूनो का प्रविधान उनके लिए भी होना चाहिए जो सरंक्षण की जिम्मेदारी लेकर सिर्फ अपना स्वार्थ पूरा करते नज़र आते हैं!
जहाँ तक माना जाता है कि एक बक्त ऐसा भी था जिसमें गौवश प्रेम गौभक्ती किसी की पेटेंट तो न थी परन्तु गौशालाओं या सड़को पर इस वंश की दुर्दशा होते देखने को नही मिलती थी! परन्तु आज गौ हत्यारो के डर से इनकी सुरक्षा की मजबूत जिम्मेदरी होने के बाद भी, पुलिस द्वारा हत्यारो के पकड़े जाने की लगातार चर्चा रहती है जबकि यह चर्चा उस समय भी कम नही थी बस फर्क यह हुआ कि आज डिजिटल समय में फौरन पता चलता है और तब दूसरे या तीसरे रोज अखबार में पढ़ने को मिलता था! सच़ में एक दशक पूर्ण होने के करीब होने के बाद भी आज हम, गौवश को पूरी तरह सुरक्षित व सरंक्षित करने में कामयाब नही हैं
हकीकत से हमे मुंह मोड़ लेने पर गौरक्षा में रत्तीभर कामयाबी नही मिलने वाली! इस विषय पर देश के सभी वर्गो को एक राय होकर जमीनी स्तर पर पिछले दशको की तरह काम करने की जरुरत है, मग़र यह गैरमुमकिन है कि इस तरह से सच़ में उन्हे बचाने में तथाकथित/कथित गौरक्षक स्वयं को अपमानित महसूस कर इसके लिए भी सड़को पर बिरोध प्रदर्शन को बाध्य हो..? लेकिन क्या सच़ में हमें आज गौरक्षा के लिए एकजुट होकर जागरुक बनने और जागरक करने तथा स्वयं के खर्च से बचा कर गौमाता के लिए खर्च करने की जरुरत नही..? यदि हाँ तो फिर इसका आरंभ जल्द किए जाने की जरुरत है! इस जरुरत में यदि सरकार से किसी चीज़ की जरुरत हो और सरकार द्वारा वो मिले तो उसे भी सच्चे मन से ईमानदारी के साथ गौवश पर ही खर्च करें तब ही हम सच़ मायने में गौवश की सुरक्षा और उसे सरंक्षण देने में कामयाब हो सकते हैं!