छोटे कहे जाने बाले पत्रकार, जाएं तो आखिर कहाँ जाएं! कौन सुनेे दर्द!
CRS इमरान साग़र की क़लम से!
हर बार छोटे कहे जाने बाले सच़ में जमीनी पत्रकार होते हैं जो देश की पत्रकारिता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन उन्हें बदलते परिवेष के संसाधनों और मान्यता की कमी का सामना करना पड़ रहा है!
सीमित पुरानी बाईक और सस्ते छोटे मोबाईल जैसे संसाधनो के बल पर तमाम कठिनाईयों का सामना करते हुए समाज़ की असली हकीकत उजागर कर रहे हैं जबकि इसके विपरीत बड़े
मीडिया हाउसों के पास अत्याधुनिक उपकरण और बड़ी बड़ी टीम है!
छोटे संसाधनो के साथ तमाम कठिनाईयों का सामना करते हुए समाज का आईना बने छोटे छोटे पत्रकारो को उनके अपने क्षेत्रो में सम्मान मिलना तो दूर की बात है बल्कि नामालूम किन किन अभद्र शब्दो से नबाज़ा जाता है!
बड़ी खबरो का माध्यम बननते छोटे पत्रकारो द्वारा प्रतिदिन जमा होने बाले समाचार भी उन्हे बड़ा नही बनने देते, और न ही सरकार और न ही संस्थान उनकी जरुरतो को कभी समझने का प्रयास करते बल्कि उनके नाम पर बनाए गए तमाम तथाकथित संगठन, कथिस संगठन भी उनके साथ सौतेला व्यवहार रखते हैं ऐसे में यह छोेटे कहे जाने वाले पत्रकार जांय तो आखिर कहाँ जांय!