बज़्मे हयाते अदब के किठावां में एक तरही शेरी नाशिस्त का आयोजन किया गया।
सलोन रायबरेली
बज़्मे हयाते अदब के तत्वाधान में काशाना ए हयात किठावां में एक तरही शेरी नाशिस्त का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता मौलाना अहमद नदवी परशदेपुरी ने की और संचालन शफ़ीक़ हसन मालेगांव ने किया । ‘आए हुए हो दर्द बढ़ाने के वास्ते’ इस मिसरे पर सब ने ग़ज़लें सुनाईं।अध्यक्षीय भाषण में मौलाना अहमद नदवी ने कहा कि अच्छी और इस्लाही शायरी समाज को ख़ूबसूरत बनाने के लिए बेहतरीन क़दम है। पसंदीदा शेर पेशे ख़िदमत हैं : क़ासिम हुनर सलोनी- दरिया को भी ग़ुरूर है अपने शबाब पर, मैं भी बज़िद हूं तैर के जाने के वास्ते। शफ़ीक़ हसन मालेगांव -मैं मुस्कुरा ही पढ़ता हूं पूरे वक़ार से, अश्के ग़मे हयात छुपाने के वास्ते। हाशिम उमर -तक़दीर में नहीं था तो मिलता वो क्या हमें, तदबीर की बहुत उसे पाने के वास्ते। नफ़ीस अख़्तर सलोनी – गर दिल मिला हुआ है तो रहमो करम करो, आंखें मिली नहीं है दिखाने के वास्ते। शब्बीर हैदर -बेख़ौफ़ मुफ़्लिसों की जलाते हो झोपड़ी, ऊंची हवेलियों को बनाने के वास्ते। दिलशाद राही -ख़ुशहाल देखने के लिए अपने घर को हम, परदेस आ गए हैं कमाने के वास्ते। आमिर क़मर- मैं रूठता नहीं हूं किसी से भी इसलिए ,आएगा कौन मुझको मनाने के वास्ते ।
यासिर नज़र- सोचा था मैंने साथ निभाओगे तुम मगर ,आए हुए हो छोड़के जाने के वास्ते ।शान सलोनी -सौ झूट का सहारा ये लेता है आदमी ,अफ़सोस एक झूट छुपाने के वास्ते। अम्मार सहर- फ़िरऔन जैसे लोगों के घर में तो ऐ सहर, कोई नहीं चराग़ जलाने के वास्ते। तय्यार ज़फ़र- माचिस नहीं बनूंगा जलाने के वास्ते , पानी बनूंगा आग बुझाने के वास्ते। इस मौक़े पर इरशाद राईनी महाराजा अचार वाले ने अपने भाव व्यक्त किये और आख़िर में नौशाद अंसारी ने तमाम शायरों और श्रोताओं का शुक्रिया अदा किया ।इस मौक़े पर शमीम अंसारी, आलम राईनी, शहबाज़ सेबू ,मोहम्मद सैफ़, मोहम्मद अख़्लाक़, बिलाल ,वक़ार, नजम असग़र, वग़ैरह मौजूद रहे।
RAEBARELI(SALON)
TAHSIL CORRESPONDENT