लम्पी स्किन डिजीज नामक़ बीमारी का गौवंश पर बरस रहा है कहर!
लगातार बढ़ती बीमारी के बाद भी सरकार खामोश!
CRS शाहजहाँपुर से इमरान साग़र!
लम्पी नामक़ बीमारी लगातार गौवंश में होती दखाई पड़ रही है! जानबरो की तव्चा पर बड़े बड़े गिलट के रूप में उभरते छाले आसानी से देखे जा सकते हैं! सबसे अधिक यह गौवश में देखने को मिल रही है जबकि उ०प्र० सरकार द्वारा गौवश प्रेम जग जाहिर परन्तु इसके बाद भी इस मामले को सरकार गंभीरता से लेती नज़र नही आ रही है!
गांव कनेक्शन नाम का पोर्टल लिखता है कि लम्पी स्किन डिजीज देश के 10 अधिक राज्यों व केंद्र शासित राज्यों तक पहुंच गई है, इकई राज्यों में पशुओं की मौत भी हो गई है! उन्होने अपनी साईट पर इससे बचने के उपाय सहित सहित यह भी बताया है कि इस बीमारी के आरंभिक लक्षण क्या हैं!
गांव कनेक्शन कहते हैं कि देश में एक बड़ी आबादी पशुपालन से जुड़ी हुई है, ऐसे में एक नई बीमारी लम्पी स्किन डिजीज ने पशुपालकों को परेशान कर रखा है, इस बीमारी को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल है! लम्पी स्किन डिजीज क्या है? यह किन पशुओं को प्रभावित करता है? इसके लक्षण क्या हैं?
लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी होती है, जो गाय-भैंसों में होती है! लम्पी स्किन डिज़ीज़ में शरीर पर गांठें बनने लगती हैं, खासकर सिर, गर्दन, और जननांगों के आसपास! धीरे-धीरे ये गांठे बड़ी होने लगती हैं और घाव बन जाता है! एलएसडी वायरस मच्छरों और मक्खियों जैसे खून चूसने वाले कीड़ों से आसानी से फैलता है! साथ ही ये दूषित पानी, लार और चारे के माध्यम से भी फैलता है! भारत में सबसे पहले लम्पी स्किन डिजीज वायरस का संक्रमण साल 2019 में पश्चिम बंगाल में देखा गया था। जोकि 2021 तक 15 से अधिक राज्यों में फैल गया!
यह बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी! पिछले कुछ सालों में ये बीमारी कई देशों के पशुओं में फैल गई, साल 2015 में तुर्की और ग्रीस और 2016 में रूस जैसे देश में इसने तबाही मचाई! जुलाई 2019 में इसे बांग्लादेश में देखा गया, जहां से ये कई एशियाई देशों में फैल रहा है! अगर एक पशु में संक्रमण हुआ तो दूसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं! ये बीमारी, मक्खी-मच्छर, चारा के जरिए फैलती है, क्योंकि पशु भी एक राज्य से दूसरे राज्य तक आते-जाते रहते हैं, जिनसे ये बीमारी एक से दूसरे राज्य में भी फैल जाती है!
अन्य पशुओं के बचाव में के लिए सबसे अहम है कि रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए, अगर पशुशाला(गौशाला) में या नजदीक में किसी पशु में संक्रमण की जानकारी मिलती है, तो स्वस्थ पशु को हमेशा उनसे अलग रखना चाहिए!
रोग के लक्षण दिखाने वाले पशुओं को नहीं खरीदना चाहिए, मेला, मंडी और प्रदर्शनी में पशुओं को नहीं ले जाना चाहिए! पशुशाला में कीटों की संख्या पर काबू करने के उपाय करने चाहिए, मुख्यत: मच्छर, मक्खी, पिस्सू और चिंचडी का उचित प्रबंध करना चाहिए! रोगी पशुओं की जांच और इलाज में उपयोग हुए सामान को खुले में नहीं फेंकना चाहिए!
इतने बड़े पैमाने पर और लगातार बढ़ रही इस बीमारी से निपटने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए! लगातार बढ़ रही इस बामारी की चपेट में गौवश के साथ ही दुधारू भैसो के भी आने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता और यदि एैसा हुआ तो बाजार में आने वाली दूध की किल्लत और सेंथेटिक दूध को बढ़वा मिलने से रोकना स़भव नही होगा!